
FISHCOPFED (National Federation of Fishers Cooperatives Ltd – राष्ट्रीय मत्स्य सहकारी संघ लिमिटेड)
भारत कृषि प्रधान देश होने के साथ-साथ मत्स्य पालन में भी दुनिया में अग्रणी है। देश के करोड़ों लोग आजीविका के लिए मत्स्य उद्योग पर निर्भर हैं। इस क्षेत्र को संगठित करने और मछुआरा समुदाय को सहकारिता की शक्ति से सशक्त बनाने के लिए National Federation of Fishers Cooperatives Ltd (FISHCOPFED) की स्थापना हुई। 1980 से लेकर आज तक FISHCOPFED ने मछुआरों को न केवल आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि भारत को वैश्विक मत्स्य उत्पादन में अग्रणी स्थान दिलाने में भी मदद की।
स्थापना और इतिहास
- FISHCOPFED की स्थापना 19 अगस्त 1980 को एक राष्ट्रीय स्तर की सहकारी संस्था के रूप में की गई।
- यह भारत सरकार के मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अधीन कार्य करती है।
- इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
- इसका मुख्य उद्देश्य देश के मत्स्य सहकारी संगठनों को एक मंच पर लाना, उन्हें वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करना और मछुआरों के सामाजिक-आर्थिक विकास को सुनिश्चित करना है।
संगठनात्मक स्वरूप
- FISHCOPFED एक राष्ट्रीय स्तर का संघ है, जिसमें देशभर के राज्य, जिला और प्राथमिक मत्स्य सहकारी संघ सदस्य हैं।
- वर्तमान में इसमें 17 से अधिक राज्य स्तरीय मत्स्य सहकारी संगठन और 1,200+ प्राथमिक मत्स्य सहकारी समितियाँ शामिल हैं।
- लाखों मछुआरे इस संगठन के माध्यम से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं।
FISHCOPFED की प्रमुख उपलब्धियाँ
1. वित्तीय और तकनीकी सहायता
- मछुआरों को आधुनिक मछली पकड़ने के उपकरण, नावें और जाल उपलब्ध कराए गए।
- सहकारी समितियों को ऋण और अनुदान प्रदान कर उनकी उत्पादन क्षमता बढ़ाई गई।
2. प्रशिक्षण और कौशल विकास
- FISHCOPFED ने केंद्र और राज्यों में 2,000 से अधिक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए।
- अब तक 5 लाख से अधिक मछुआरों को आधुनिक मत्स्य पालन तकनीक, प्रसंस्करण और विपणन का प्रशिक्षण दिया गया।
3. मत्स्य बीमा योजना
- मछुआरों की सुरक्षा के लिए बीमा योजनाएँ शुरू की गईं।
- 2022 तक 25 लाख से अधिक मछुआरों को बीमा का लाभ दिया जा चुका है।
4. विपणन और निर्यात
- सहकारी समितियों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार से जोड़कर मत्स्य उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा दिया।
- 2021-22 में भारत का मत्स्य निर्यात लगभग ₹57,586 करोड़ तक पहुँचा, जिसमें सहकारी समितियों का बड़ा योगदान रहा।
5. सामाजिक कल्याण
- मछुआरा समुदाय के बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास योजनाओं में सहायता।
- महिला मछुआरों के लिए विशेष कार्यक्रम और स्व-सहायता समूहों को प्रोत्साहन।
आंकड़ों के साथ FISHCOPFED की ताकत
- स्थापना: 1980
- मुख्यालय: नई दिल्ली
- सदस्य संगठन: 17+ राज्य स्तरीय सहकारी, 1200+ प्राथमिक समितियाँ
- लाभार्थी: लाखों मछुआरे परिवार
- प्रशिक्षण: 5 लाख+ मछुआरे प्रशिक्षित
- बीमा लाभ: 25 लाख+ मछुआरे
- निर्यात (2021-22): ₹57,586 करोड़
- वार्षिक टर्नओवर (अनुमानित): ₹1,000 करोड़+
मछुआरा समुदाय और ग्रामीण भारत पर प्रभाव
- सहकारिता के कारण मछुआरों की आय में वृद्धि।
- पारंपरिक मछली पकड़ने से आधुनिक मत्स्य पालन तकनीकों की ओर बदलाव।
- मत्स्य पालन के सहारे लाखों ग्रामीण परिवारों को रोजगार।
- शिक्षा और स्वास्थ्य योजनाओं से सामाजिक स्थिति में सुधार।
चुनौतियाँ
- जलवायु परिवर्तन और समुद्री संसाधनों का अति-शोषण।
- मछली उत्पादों के संरक्षण और कोल्ड स्टोरेज की कमी।
- ग्रामीण स्तर पर आधुनिक तकनीक की धीमी पहुँच।
- वित्तीय अनुशासन और प्रबंधन में असमानता।
भविष्य की योजनाएँ
- ब्लू रिवोल्यूशन 2.0 के साथ तालमेल
- मत्स्य पालन को कृषि के समान महत्व देकर उत्पादन क्षमता को दोगुना करने की योजना।
- इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास
- कोल्ड स्टोरेज, प्रसंस्करण इकाइयों और मछली बाजारों का निर्माण।
- डिजिटल प्लेटफॉर्म
- मछुआरों को डिजिटल मार्केटिंग और ऑनलाइन बिक्री से जोड़ना।
- महिला सशक्तिकरण
- महिला मछुआरों के लिए विशेष सहकारी समितियाँ और ऋण योजनाएँ।
- निर्यात लक्ष्य
- 2030 तक भारत को मत्स्य निर्यात में वैश्विक शीर्ष 3 देशों में लाना।
FISHCOPFED ने 1980 से अब तक भारतीय मत्स्य उद्योग को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया है। इसने न केवल लाखों मछुआरों की आय और आजीविका को सुरक्षित किया है, बल्कि भारत को मत्स्य निर्यात में विश्व के अग्रणी देशों में भी शामिल किया है। भविष्य में तकनीकी नवाचार, महिला सशक्तिकरण और निर्यात बढ़ाने की योजनाएँ इसे और अधिक सशक्त बनाएँगी।
FISHCOPFED सही मायनों में “सहकारिता से समृद्धि” के मंत्र को साकार कर रहा है।
