हाउसिंग कोऑपरेटिव्स: आम आदमी के सपनों का घर
“अपना घर” हर व्यक्ति का सपना होता है। भारत जैसे विकासशील देश में, जहाँ जनसंख्या निरंतर बढ़ रही है और शहरीकरण तेजी से हो रहा है, वहाँ सस्ती और गुणवत्तापूर्ण आवास की मांग लगातार बढ़ रही है। इस चुनौती का समाधान हाउसिंग कोऑपरेटिव्स (Housing Cooperatives) के रूप में सामने आया। ये सहकारी संस्थाएँ सामूहिक प्रयास और आपसी सहयोग से आम नागरिकों को घर उपलब्ध कराने में अहम भूमिका निभा रही हैं।
हाउसिंग कोऑपरेटिव्स की स्थापना का इतिहास
भारत में हाउसिंग कोऑपरेटिव्स का विचार ब्रिटिश काल से जुड़ा है।
- 1904 के सहकारी कानून के तहत प्रारंभिक सहकारी संस्थाएँ बनीं, लेकिन तब उनका फोकस कृषि और ग्रामीण ऋण पर था।
- 1912 के संशोधित सहकारी कानून के बाद पहली बार हाउसिंग कोऑपरेटिव्स को मान्यता मिली।
- स्वतंत्रता के बाद, विशेषकर 1950 और 1960 के दशक में, बढ़ते शहरीकरण और प्रवास के चलते हाउसिंग कोऑपरेटिव्स तेजी से उभरे।
- नेशनल कोऑपरेटिव हाउसिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (NCHF) की स्थापना 1969 में की गई, ताकि देशभर की हाउसिंग सोसायटियों को मार्गदर्शन और वित्तीय सहयोग मिल सके।
हाउसिंग कोऑपरेटिव्स की संरचना
हाउसिंग कोऑपरेटिव्स का गठन आमतौर पर एक सोसायटी के रूप में होता है, जहाँ सदस्य मिलकर भूमि खरीदते हैं और सामूहिक रूप से भवन या कॉलोनी का निर्माण करते हैं।
- सदस्य = फ्लैट/प्लॉट धारक
- प्रबंधन समिति = निर्वाचित प्रतिनिधि
- उद्देश्य = सस्ती लागत पर गुणवत्तापूर्ण आवास और सुविधाएँ उपलब्ध कराना
अब तक की प्रमुख उपलब्धियाँ
1. आवास निर्माण में योगदान
- भारत में अब तक 96,000 से अधिक हाउसिंग कोऑपरेटिव सोसायटीज़ पंजीकृत हो चुकी हैं।
- इनमें लगभग 7 मिलियन (70 लाख) परिवार सदस्य के रूप में जुड़ चुके हैं।
- दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, चेन्नई, पुणे और कोलकाता जैसे महानगरों में अधिकांश मध्यमवर्गीय आवास इन्हीं सोसायटीज़ के माध्यम से बने।
2. सरकारी योजनाओं से तालमेल
- प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) और राज्य सरकारों की हाउसिंग योजनाओं में सहकारी समितियों ने सक्रिय भागीदारी की।
- 2015-2023 के बीच लगभग 2.5 करोड़ घरों का निर्माण या स्वीकृति दी गई, जिनमें हाउसिंग कोऑपरेटिव्स का बड़ा योगदान रहा।
3. सामाजिक समानता
- हाउसिंग कोऑपरेटिव्स ने मध्यम और निम्न आय वर्ग (LIG/MIG) को घर उपलब्ध कराए।
- महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों और कमजोर वर्गों को प्राथमिकता दी गई।
4. सामुदायिक विकास
- सिर्फ घर ही नहीं, बल्कि पार्क, स्कूल, सामुदायिक केंद्र, जल प्रबंधन और सुरक्षा व्यवस्था जैसी सुविधाएँ भी हाउसिंग सोसायटियों ने दीं।
5. रोजगार और आर्थिक योगदान
- रियल एस्टेट और निर्माण क्षेत्र भारत की GDP का लगभग 7-8% योगदान करता है।
- हाउसिंग कोऑपरेटिव्स इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लाखों रोजगार सृजित कर रहे हैं।
आंकड़ों के जरिए स्थिति
- भारत की जनसंख्या: 140 करोड़ (2023)
- शहरी आबादी: 35% से अधिक
- आवास की कमी: लगभग 29 मिलियन यूनिट्स
- हाउसिंग कोऑपरेटिव्स द्वारा अब तक बनाए गए घर: 7 मिलियन यूनिट्स
- लक्ष्य (2030 तक): कम से कम 15 मिलियन यूनिट्स का निर्माण
भविष्य की योजनाएँ और संभावनाएँ
- स्मार्ट हाउसिंग
- डिजिटलाइजेशन, स्मार्ट सुरक्षा और ई-गवर्नेंस को हाउसिंग सोसायटियों में लागू करना।
- सतत विकास (Sustainable Housing)
- ग्रीन बिल्डिंग, सोलर एनर्जी और वर्षा जल संचयन पर जोर।
- सस्ती आवास योजनाएँ
- LIG और EWS वर्ग को केंद्र में रखकर PMAY और अन्य योजनाओं से जोड़ना।
- महिला एवं युवा भागीदारी
- महिला-नेतृत्व वाली हाउसिंग सोसायटियों और युवा उद्यमियों को प्रोत्साहन।
- 2030 तक का लक्ष्य
- कम से कम 1.5 करोड़ नए घर हाउसिंग कोऑपरेटिव्स के माध्यम से।
- शहरी आवास की कमी को 50% तक कम करना।
हाउसिंग कोऑपरेटिव्स ने भारत में “अपना घर” के सपने को साकार करने में अहम भूमिका निभाई है। ये सिर्फ ईंट-पत्थर की इमारतें नहीं बनाते, बल्कि समुदायों का निर्माण करते हैं। सामूहिक सहयोग और सहकारिता की भावना के साथ ये संस्थाएँ आने वाले समय में भारत के शहरीकरण की दिशा तय करेंगी।
2030 तक सतत, सस्ता और स्मार्ट हाउसिंग का लक्ष्य इन सहकारी समितियों को और महत्वपूर्ण बनाएगा।
