IFFCO

भारत की कृषि व्यवस्था में सहकारिता की भूमिका हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। किसान केवल अन्नदाता ही नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा हैं। इन्हीं किसानों की ज़रूरतों और सपनों को ध्यान में रखते हुए 1967 में भारतीय किसान उर्वरक सहकारी लिमिटेड (IFFCO) की स्थापना हुई। आज IFFCO केवल भारत ही नहीं बल्कि विश्व की सबसे बड़ी सहकारी संस्था है, जिसने उर्वरक उत्पादन और वितरण की नई इबारत लिखी है।

स्थापना और इतिहास

  • IFFCO की स्थापना 3 नवंबर 1967 को किसानों की सहकारी पहल और भारत सरकार के सहयोग से की गई।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
  • शुरुआत में इसका उद्देश्य किसानों को सस्ती दरों पर गुणवत्तापूर्ण उर्वरक उपलब्ध कराना और सहकारिता के माध्यम से आत्मनिर्भरता की राह पर आगे बढ़ना था।
  • उस समय भारत हर साल लाखों टन उर्वरक आयात करता था, लेकिन IFFCO ने इस निर्भरता को कम करने में निर्णायक भूमिका निभाई।

संगठनात्मक स्वरूप

  • IFFCO एक मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटी है।
  • इसमें देशभर की 35,000 से अधिक प्राथमिक सहकारी समितियाँ सदस्य हैं।
  • इसका संचालन किसानों द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के हाथों होता है, जो इसे लोकतांत्रिक और पारदर्शी संस्था बनाता है।

IFFCO की प्रमुख उपलब्धियाँ

1. उत्पादन क्षमता

  • IFFCO के पास पाँच बड़े उत्पादन संयंत्र हैं:
    1. कलोल (गुजरात)
    2. कांडला (गुजरात)
    3. आंवला (उत्तर प्रदेश)
    4. फुलपुर (उत्तर प्रदेश)
    5. परदेसीपल्ली (ओडिशा)
  • इन संयंत्रों की संयुक्त उत्पादन क्षमता 90 लाख मीट्रिक टन से अधिक है।
  • इसके अलावा IFFCO के कई सहायक और संयुक्त उपक्रम भी हैं, जैसे इंडो-जॉर्डन केमिकल्स, ओमान इंडिया फर्टिलाइज़र कंपनी इत्यादि।

2. किसानों तक पहुँच

  • IFFCO का नेटवर्क 36,000 सहकारी समितियों तक फैला हुआ है।
  • इसके माध्यम से 5 करोड़ से अधिक किसान सदस्य सीधे जुड़े हुए हैं।
  • IFFCO केवल उर्वरक ही नहीं, बल्कि बीज, कीटनाशक, जैव-उर्वरक और कृषि सेवाएँ भी उपलब्ध कराता है।

3. नवाचार और डिजिटलीकरण

  • IFFCO ने नैनो यूरिया लिक्विड जैसी क्रांतिकारी तकनीक विकसित की है।
  • इससे 50% तक उर्वरक की खपत घट सकती है और उत्पादन लागत कम होती है।
  • कंपनी ने IFFCO Bazar नाम से ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म भी लॉन्च किया है, जहाँ किसान बीज, उर्वरक और कृषि उत्पाद ऑनलाइन खरीद सकते हैं।

4. ग्रामीण विकास और सामाजिक जिम्मेदारी

  • IFFCO ने शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण और पर्यावरण संरक्षण में भी निवेश किया है।
  • इसके ग्रामीण विकास कार्यक्रमों से 20,000 से अधिक गाँव लाभान्वित हो चुके हैं।

आंकड़ों के साथ IFFCO की ताकत

  • स्थापना: 1967
  • उत्पादन संयंत्र: 5 प्रमुख इकाइयाँ + अंतर्राष्ट्रीय साझेदारियाँ
  • वार्षिक उत्पादन क्षमता: 90 लाख मीट्रिक टन से अधिक
  • सदस्य किसान: 5 करोड़ से अधिक
  • सहकारी समितियाँ: 35,000+
  • टर्नओवर (2022-23): ₹60,000 करोड़ से अधिक
  • CSR निवेश: ₹500 करोड़ से अधिक (पिछले दशक में)

किसानों और ग्रामीण भारत पर प्रभाव

  • IFFCO के कारण उर्वरक किसानों तक सस्ती दरों पर पहुँचता है।
  • नैनो यूरिया और जैविक उर्वरकों ने कृषि लागत घटाई और उत्पादकता बढ़ाई
  • ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और उद्यमिता के अवसर बढ़े।
  • किसानों की सहकारी समितियों के माध्यम से लोकतांत्रिक भागीदारी बढ़ी।

चुनौतियाँ

  • कच्चे माल (जैसे प्राकृतिक गैस) की कीमतों पर वैश्विक निर्भरता।
  • किसानों को उर्वरकों के वैज्ञानिक और संतुलित उपयोग के प्रति जागरूक करना।
  • उर्वरकों के पर्यावरणीय दुष्प्रभाव को कम करना।
  • बढ़ती जनसंख्या और घटती कृषि भूमि के बीच खाद्यान्न मांग को पूरा करना।

भविष्य की योजनाएँ

  1. नैनो टेक्नोलॉजी विस्तार
    • नैनो यूरिया और नैनो DAP को बड़े पैमाने पर किसानों तक पहुँचाना।
    • 2030 तक 50% पारंपरिक यूरिया को नैनो यूरिया से बदलने का लक्ष्य।
  2. ग्रीन एनर्जी और नवीकरणीय पहल
    • सौर और पवन ऊर्जा आधारित संयंत्रों की स्थापना।
    • ग्रीन अमोनिया और ग्रीन हाइड्रोजन प्रोजेक्ट पर काम।
  3. वैश्विक विस्तार
    • अफ्रीका और एशिया के देशों में उर्वरक उत्पादन और वितरण नेटवर्क विकसित करना।
  4. डिजिटल इंडिया से तालमेल
    • IFFCO Bazar को ग्रामीण ई-कॉमर्स हब बनाना।
    • किसानों के लिए डिजिटल प्रशिक्षण कार्यक्रम।
  5. सतत कृषि
    • जैव-उर्वरक और ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स को बढ़ावा देना।
    • पर्यावरण-अनुकूल कृषि पद्धतियों पर जोर।

IFFCO केवल एक सहकारी संस्था नहीं, बल्कि किसानों की शक्ति और भारत की आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। 1967 से लेकर आज तक इसने कृषि उत्पादन, खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण विकास में ऐतिहासिक योगदान दिया है। आने वाले वर्षों में नैनो टेक्नोलॉजी, ग्रीन एनर्जी और वैश्विक विस्तार के साथ IFFCO भारत के किसानों को और मजबूत बनाएगा और “सहकार से समृद्धि की ओर” के मंत्र को साकार करेगा।