SUGAR COOP

भारत के शुगर कोऑपरेटिव्स

भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश है और यहाँ गन्ना किसानों की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने में शुगर कोऑपरेटिव्स (चीनी सहकारी समितियों) ने क्रांतिकारी भूमिका निभाई है। सहकारिता मॉडल पर आधारित शुगर फैक्टरियाँ किसानों को न केवल उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाती हैं, बल्कि स्थानीय स्तर पर रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक विकास में भी योगदान देती हैं।

शुगर कोऑपरेटिव्स की स्थापना का इतिहास

भारत में चीनी उद्योग का इतिहास औपनिवेशिक काल तक जाता है, लेकिन सहकारिता मॉडल पर इसका असली विस्तार स्वतंत्रता के बाद हुआ।

  • 1950 के दशक में महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक जैसे गन्ना उत्पादक राज्यों में किसानों की आय अस्थिर थी।
  • निजी मिलें किसानों का शोषण करती थीं और भुगतान में देरी करती थीं।
  • ऐसे समय में, सहकारिता आंदोलन से प्रेरित होकर 1951 में महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में प्रथम चीनी सहकारी मिल (प्रवरानगरशंकरराव कोल्हे की पहल) स्थापित हुई।
  • इसके बाद सहकारिता मॉडल तेजी से फैला और आज भारत में लगभग 250 से अधिक शुगर कोऑपरेटिव्स सक्रिय हैं।

शुगर कोऑपरेटिव्स की प्रमुख उपलब्धियाँ

1. किसानों की आय में वृद्धि

  • भारत में लगभग 5 करोड़ गन्ना किसान और उनके परिवार शुगर उद्योग से जुड़े हैं।
  • सहकारी चीनी मिलें किसानों को सरकारी तय न्यूनतम मूल्य (FRP) पर सीधा भुगतान करती हैं।
  • महाराष्ट्र में लगभग 70% चीनी उत्पादन सहकारी मिलों के जरिए होता है।

2. उत्पादन क्षमता

  • भारत का वार्षिक चीनी उत्पादन 32-35 मिलियन टन तक पहुँच चुका है।
  • इसमें से 60% योगदान सहकारी और किसानआधारित चीनी मिलों का है।

3. रोजगार सृजन

  • शुगर कोऑपरेटिव्स प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 50 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देते हैं।
  • गन्ना काटने वाले मजदूरों से लेकर ट्रांसपोर्ट, इंजीनियरिंग, पैकेजिंग और मार्केटिंग तक सहकारिता मिलें अवसर देती हैं।

4. ऊर्जा और एथेनॉल उत्पादन

  • कई सहकारी मिलें बायोपावर और एथेनॉल उत्पादन कर रही हैं।
  • 2022-23 में भारत ने लगभग 500 करोड़ लीटर एथेनॉल उत्पादन किया, जिसमें से एक बड़ा हिस्सा सहकारी मिलों का योगदान था।
  • यह कदम पेट्रोल में एथेनॉल मिश्रण (Ethanol Blending Programme) में सहायक है।

5. सामाजिक योगदान

  • शिक्षा संस्थान, कॉलेज, हॉस्पिटल और ग्रामीण विकास परियोजनाएँ शुगर कोऑपरेटिव्स ने स्थापित किए।
  • महाराष्ट्र और कर्नाटक में कई सहकारी मिलें स्थानीय स्तर पर विद्यालय, छात्रावास और महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम चलाती हैं।

सरकार और शुगर कोऑपरेटिव्स

भारत सरकार और राज्य सरकारें शुगर कोऑपरेटिव्स को कई योजनाओं से मज़बूत कर रही हैं:

  • सॉफ्ट लोन स्कीम: मिलों को वित्तीय स्थिरता के लिए सस्ता ऋण।
  • एथेनॉल प्रोत्साहन योजना: एथेनॉल उत्पादन बढ़ाने के लिए सब्सिडी और निवेश।
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य (FRP): किसानों को गन्ने का उचित दाम।
  • प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI): निर्यात और आधुनिक तकनीक को बढ़ावा।

भविष्य की योजनाएँ और संभावनाएँ

  1. एथेनॉल अर्थव्यवस्था
    • भारत सरकार ने 2025 तक 20% एथेनॉल ब्लेंडिंग लक्ष्य तय किया है।
    • शुगर कोऑपरेटिव्स इस लक्ष्य को पूरा करने में मुख्य भूमिका निभाएँगे।
  2. ग्रीन एनर्जी और बायोपावर
    • गन्ने के अवशेष (बगास) से बिजली उत्पादन बढ़ाया जाएगा।
    • ग्रामीण क्षेत्रों को सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा उपलब्ध कराई जाएगी।
  3. निर्यात में वृद्धि
    • भारत दुनिया का प्रमुख चीनी निर्यातक बन रहा है।
    • सहकारी मिलें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रांडिंग और निर्यात को बढ़ावा देंगी।
  4. स्मार्ट टेक्नोलॉजी और डिजिटलीकरण
    • डिजिटल भुगतान, फसल प्रबंधन एप और स्मार्ट मशीनरी का इस्तेमाल।
    • गन्ना किसानों के लिए मार्केटिंग और ऑनलाइन सप्लाई चेन।
  5. ग्रामीण विकास और सामाजिक कार्यक्रम
    • शिक्षा, स्वास्थ्य और महिला सशक्तिकरण योजनाओं को और मज़बूत किया जाएगा।

भारत के शुगर कोऑपरेटिव्स ने न केवल गन्ना किसानों की जिंदगी बदल दी, बल्कि देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी है। रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, ऊर्जा और निर्यात—हर क्षेत्र में इनका योगदान सराहनीय है।

भविष्य में एथेनॉल उत्पादन, ग्रीन एनर्जी और निर्यात विस्तार के माध्यम से शुगर कोऑपरेटिव्स भारत को आत्मनिर्भर भारत के सपने के करीब ले जाएंगे।